वो सुबह कभी तो आयेगी, वो सुबह कभी तो आएगी इन काली सदियों के सर से, जब रात का आँचल ढलकेगा जब दुःख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर छलकेगा जब अंबर झूम के नाचेगा, जब धरती नग्में गाएगी वो सुबह कभी तो आएगी जिस सुबह की ख़ातिर जुग जुग से, हम सब मर मर कर जीते हैं जिस सुबह के अमृत की धुन में हम जहर के प्याले पीते हैं इन भूखी प्यासी रूहों पर एक दिन तो करम फरमाएगी वो सुबह कभी तो आएगी माना के अभी तेरे मेरे अरमानों की क़ीमत कुछ भी नहीं मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर, इन्सानों की क़ीमत कुछ भी नहीं इन्सानों की इज़्ज़त जब झूठे सिक्कों में ना तोली जाएगी वो सुबह कभी तो आएगी#RajKapoor #MalaSinha
Wo subah kabhi to ayegi, wo subah kabhi to aegi In kaali sadiyon ke sar se, jab raat ka anchal dhalakega Jab duhkh ke baadal pighalenge, jab sukh ka saagar chhalakega Jab anbar jhum ke naachega, jab dharati nagmen gaaegi Wo subah kabhi to aegi Jis subah ki khaatir jug jug se, ham sab mar mar kar jite hain Jis subah ke amrit ki dhun men ham jahar ke pyaale pite hain In bhukhi pyaasi ruhon par ek din to karam faramaaegi Wo subah kabhi to aegi Maana ke abhi tere mere aramaanon ki qimat kuchh bhi nahin Mitti ka bhi hai kuchh mol magar, insaanon ki qimat kuchh bhi nahin Insaanon ki ijjt jab jhuthhe sikkon men na toli jaaegi Wo subah kabhi to aegi
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Madhavi Ganpule
वह सुबह कभी तो आएगी
दौलत के जब औरत की इस्मत को न बेचा जाएगा
चाहत को ना कुचला जाएगा, ग़ैरत को न बेचा जाएगा
अपनी काली करतूतों पर जब यह दुनिया शर्माएगी
वह सुबह कभी तो आएगी
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर, यह भूख के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर, दौलत की इजारादारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी
AND below are Additional stanzas which are in the original lyrics
वह सुबह कभी तो आएगी
मजबूर बुढापा जब सूनी राहों की धूल ना फांकेगा
मासूम लडकपन जब गंदी गलियों में भीख ना मांगेगा
ह्क़ मांगनेवालों को जिस दिन सूली ना दिखाई जाएगी
वह सुबह कभी तो आएगी
फ़ाकों की चिताओं पर जिस दिन इंन्सा न जलाए जाएंगे
सीनों के दहकते दोज़ख़ में अरमां ना जलाए जाएंगे
यह नरक से भी गंदी दुनिया, जब स्वर्ग बनाई जाएगी
वह सुबह हमीं से आएगी
जब धरती करवट बदलेगी , जब क़ैद से क़ैदी छूटेंगे
जब पाप-घरोंदे फूटेंगे, जब ज़ुल्म के बंधन टूटेंगे
उस सुबह को हम ही लाएंगे, वह सुबह हमी से आएगी
वह सुबह हमीं से आएगी
मनहूस समाजी ढाचों में जब जुर्म न पाले जाएंगे
जब हाथ न काटे जाएंगे जब सर न उछाले जाएंगे
जेलों के बिना जब दुनिया की सरकार चलाई जाएगी
वह सुबह हमीं से आएगी
संसार के सारे मेह्नतकश, खेतों से मिलों से निकलेंगे
बेघर, बेदर, बेबस इन्सां, तारीक बिलों से निकलेंगे
दुनिया अम्न और ख़ुशहाली के फुलों से सजाई जाएगी
वह सुबह हमीं से आएगी
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