ये आईने से अकेले में गुफ़्तगू क्या है जो मैं नहीं तो फिर तेरे रूबरू क्या है इसी उम्मीद पे काटी है ज़िन्दगी मैंने वो काश पूछते मुझसे कि आरज़ू क्या है ये रंग-ए-गुल ये शफ़क़ और ये ताबिश-ए-अंजुम तेरा जमाल नहीं है तो चारसू क्या है क्यों उनके सामने तुम दिल की बात करते हो जो खुद समझते नहीं दिल की आबरू क्या है
Ye aine se akele men guftagu kya hai Jo main nahin to fir tere rubaru kya hai Isi ummid pe kaati hai zindagi mainne Wo kaash puchhate mujhase ki arazu kya hai Ye rng-e-gul ye shafaq aur ye taabish-e-anjum Tera jamaal nahin hai to chaarasu kya hai Kyon unake saamane tum dil ki baat karate ho Jo khud samajhate nahin dil ki abaru kya hai
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