किसको क़ातिल मैं कहूँ, किसको मसीहा समझूँ सब यहाँ दोस्त ही बैठे हैं, किसे क्या समझूँ वो भी क्या दिन थे के हर वहम यकीं होता था अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे ऐसे माहौल में अब किसको पराया समझूँ ज़ुल्म ये है के है यकता तेरी बेगाना-रवी लुत्फ़ ये है के मैं अब तक तुझे अपना समझूँ
Kisako qaatil main kahun, kisako masiha samajhun Sab yahaan dost hi baithhe hain, kise kya samajhun Wo bhi kya din the ke har waham yakin hota tha Ab haqiqat nazar ae to use kya samajhun Dil jo tuta to ki haath dua ko uthhe Aise maahaul men ab kisako paraaya samajhun Zulm ye hai ke hai yakata teri begaana-rawi Lutf ye hai ke main ab tak tujhe apana samajhun
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Manjusha Sawant
लुत्फ़ : Pleasure