नील गगन की छाँव में दिन रैन गले से मिलते हैं
दिल पंछी बन उड़ जाता हैं, हम खोये खोये रहते हैं
जब फूल कोई मुस्काता हैं, प्रीतम की सुगंध आ जाती हैं
नस नस में भँवर सा चलता हैं, मदमाती जल न तल पाती हैं
यादों की नदी घिर आती हैं, हर मौज में हम तो बहते हैं
"मदमाती जल न तल पाती हैं " या ""मदमाती जलन तल पाती हैं "
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